गरीब नवाज ख्वाजा मुईनुद्दीन चिस्ती" की कुछ जानकारी

गरीब नवाज ख्वाजा मुईनुद्दीन चिस्ती" की कुछ जानकारी लेकर आया हूँ 

फारस जिसे हम ईरान के नाम से जानते हैं वहाँ एक कसबा था सन्जार | आपके वालिद हजरत शेख गयासुद्दीन हसन संजारी





 आपकी अम्मी बेगम मजीदा के साथ वहाँ रहा करते थे

  वर्षों से उनके घर में कोई औलाद नही हुई थी तो आपके वालिद परमात्मा से एक पुत्र की प्राप्ति के लिए दुआ किया करते थे |

एक दिन उन्हें एक खवाब आया कि परमात्मा ने उनकी दुआ कबूल कर ली हैं और जल्द ही उनके घर में एक बेटे के रूप में अल्लाह के वली आपका जन्म होने वाला हैं। आपके वालिद की आँख खुली तो ऐसा खवाब देख कर वो बेहद प्रसन्न हो गये |

 आपके आने के इंतजार में परमात्मा की बंदगी करते और अपने खवाब को जल्दी हकीकत में बदलने की दुआ करते | कुछ समय बिता सन 1136 ई० हिजरी सम्वत 530 को आपका जन्म हुआ | आपके वालिद ने आपका नाम मुईनुद्दीन रखा | आपके पूर्वज संजार के रहने वाले थे | आपका पूरा नाम शेख मुईनुद्दीन हसन संजारी हुआ | आपके वालिद बेहद खुश थे उनके चेहरे से ही उनकी ख़ुशी जाहिर हो रही थी | लोगों ने पूछा- गयासुद्दीन

 एक बेटा पाकर बहुत खुश हो | उन्होंने कहा - हाँ बिलकुल ये मेरा बेटा अल्लाह का वली हैं | ये मेरा नाम रोशन करेगा | आप बचपन से ही परमात्मा की बंदगी करने लगे थे | उन्ही दिनों वहाँ सैयद और सादाद वंशों में झगडे शुरू हो गए | धीरे धीरे वहाँ के हालात बिगड़ने लगे | मार काट होने लगी सैयद और सादाद आपस में एक दुसरे का क़त्ल करने लगे | बहुत से लोग वहाँ से पलायन करने लगे | आपके वालिद ने भी संजार से पलायन करने का फैसला लिया और



 एक दिन संजार छोडकर खुरासान चले आये वहाँ आकर उन्होंने एक आम का बगीचा खरीद लिया और यही रहने लगे। आप 15 साल के हुए तो आपके वालिद का इंतकाल हो गया, उसके कुछ समय बाद आपकी वालिदा भी इस संसार को अलविदा कह कर चली गई। आप अकेले रह गये थे, आप नेक दिल इन्सान थे | आपके पास कोई भी गरीब मदद मांगने आता, तो आप उसे मायूस नही करते थे, जो बन पड़ता था अन्न, धन यां वस्त्रों से उसकी मदद करते |

इसी आदत ने आपने अपना सब कुछ गरीबों की मदद में समाप्त कर लिया | आप खुरासान से बुखारा चले गये वहाँ आपने कुरान का अध्यन किया | कुछ ही समय बाद बकरीद आने वाली थी तो समय रहते आप काबा हज करने चल पड़े | मक्का मदीना पहुंच कर कायदे अनुसार हज पूरा किया | वापिस आते समय आपकी मुलाकात ख्वाजा उस्मान हारुनी से हुई | रुतबा-ए-हारुनी से आप इतने प्रभावित हुए कि आपने उनसे दरख्वास्त कर दी कि 

आप उनके जैसा बनना चाहते हैं । उन्होंने खुश होकर आपको अपना शागिर्द बना लिया | आपने अपने आप को पूरी तरह उनके सुपुर्द कर दिया | आप उनके कहे मुताबिक चलने लगे | उनके साथ आपको एक वर्ष होने को था दूसरी बकरीद नजदीक आ रही थी, तो उन्होंने आपसे हज पर चलने की तैयारियां करने के लिए कहा | आपने हज पर चलने की सारी तैयारियां कर ली | आप अपने गुरूजी के साथ हज पर चले गए 



हज के दौरान आपने उनके साथ सफा और मरवा पहाड़ियों की परिक्रमा शुरू की | सातवीं परिक्रमा उन्होंने आपका हाथ अपने हाथ में लेकर - पूरी की | जब अल्लाह से दुआ मांगने का वक्त आया तो उन्होंने दुआ मांगी कि अल्लाह ये मुईनुद्दीन मेरे सभी शागिर्दों में से सबसे रहम दिल इन्सान है ये गरीबों और मोहताजों की मदद करने वाला इन्सान हैं | अल्लाह इस पर अपनी निगाह- ए-कर्म कर दे | ख्वाजा उस्मान हारुनी ने दुआ के बाद आपके मस्तक को चूम लिया |

हज पूरा करके आप वापिस आ गये | आपने अपने गुरु जी से कहा- ऐसा क्या हुआ हैं मेरे मुरशद आप मुझ पर बहुत मेहरबान हुए | उन्होंने कहा मुईनुद्दीन अल्लाह ने तुझे एक नेक काम सौंपा हैं । आपने कहा  ये तो आपकी दुआ हैं | उन्होंने कहा अल्लाह ने तुम्हें गरीब नवाज के - तगमें से नवाज दिया है | तेरे मुंह से निकली हुई दुआ पत्थर की लकीर हो जायेगी  तेरा दिया हुआ आशीर्वाद गरीबों का उद्धार करेगा  आपने कहा मेरे मालिक मेरे लिए क्या आदेश हैं | उन्होंने कहा मुईनुद्दीन - गरीब नवाज हिंदुस्तान जाओ वहाँ गरीबों की मदद करो और इस्लाम को आगे बढाओ | आपने कहा जैसी आज्ञा गुरु जी | उन्होंने आपको अपना एक कुर्ता दिया | और आप उनकी दिए । दुआ लेकर हिंदुस्तान की ओर चल

आप बगदाद से बुखारा होते हुए हिंदुस्तान के राजस्थान में अपने 20 साथियों के साथ पहुँच गए |

 अजयमेरु जिसे आज हम अजमेर के नाम से जानते हैं यहाँ एक स्थान पर आपने अपने एक शागिर्द से सफर की थकान दूर करने के लिए आराम करने की ख्वायश जाहिर की तो उसने आपके लिए आराम करने का बंदोबस्त कर दिया, आप वहाँ आराम फरमाने लगे।



साँझ होने को थी ऊँटों के चरवाहे ऊँट चराकर वापिस आ गये थे, उस स्थान पर रात को वो ऊँटों को ठहराया करते थे | उन्होंने आपके पहनावे को देखकर जान

लिया कि आप लोग बाहर से आये हुए हैं, तो उन्होंने आपसे कहा आप लोगों ने यहाँ बिस्तर लगा लिया है शायद आपको मालू नही, यहाँ हम अपने ऊँटों को बैठाते हैं आप सब यहाँ से उठो और कहीं और जाओ | आपने कहा- इतनी जगह खाली पड़ी हैं। ऊँटों को कहीं और बिठा लो | हमें क्यों उठा रहे हो, हमें आराम करने दो | उन्होंने कहा हम सालों से यहाँ ऊँटों को बैठाते हैं। कहीं ओर जाना है तो आप लोग जाओ हम क्यों | आप ने कहा ठीक हैं

आपने यहाँ ऊँटों को बैठाना है हम चलते हैं, आप यहाँ ऊँटों को बैठाओ और बैठाये रखो | आप वहाँ से आना सागर की ओर चले गये | सारे ऊंट वहाँ बैठ गए |

आना सागर एक झील हैं जो राजस्थान की शान कही जाती हैं।

अगले दिन चरवाहों ने ऊँटों को उठाने की बहुतेरी कोशिश की पर ऊंट उठ नही पाए, तो उन्हें शाम की बात याद आ गई कि आपने वहाँ से आते समय उन्हें कहा था- कि ऊँटों को बैठाओ और बैठाए रखो।

 चरवाहों का ख्याल था कि आपने उनके ऊँटों पर कोई जादू कर दिया हैं तो वो आपको ढूंडने निकल पड़े थोड़ी दूर आना सागर के पास आप उन्हें मिल गये । चरवाहों ने आपसे विनती की - बाबा हमारे ऊंट उठ नहीं रहे हैं आप मेहरबानी करके उनके ऊपर से अपना जादू हटा दीजिये | आपने कहा - मैंने कोई जादू नहीं किया हैं आप कह रहे हैं, वो उठ नही रहे मैं कह रहा हूँ वो उठ गये हैं | जाओ जाकर देखो | चरवाहों ने वापिस जाकर देखा


 सचमुच सारे ऊंट उठ गये थे | वो अपने ऊँटों को चराने के लिए वहाँ से ले गये | सभी लोग आना सागर झील के पानी का इस्तेमाल किया करते थे | आप भी इसी झील से पानी ले रहे थे | सन 1190-91 ई० हिजरी सम्वत 586-87 में उन दिनों इस झील के किनारे एक मेला लगने वाला था | मेला लगने लगा तो लोग इकठ्ठा होने लगे, उन लोगों ने देखा आप लोग उस आना सागर के पानी से वजू करके उसके किनारे पर नमाज अता कर रहे हैं |

उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि पूजा तो मंदिर में की जाती है | आप मंदिर से दूर किस तरह से और किस परमात्मा की पूजा कर रहे हैं । अगले दिन मेला खूब भर गया था | जब आपके शागिर्द उस झील से पानी लेने आये तो दोनों तरफ के लोगों में झगडा हो गया | झगडा काफ़ी बढ़ गया तो आप वहाँ आ गये आपने उन्हें रोका और पूछा - आप लोग झगडा क्यों कर रहे हैं | उन्होंने कहा आपके साथी इस पानी को गन्दा कर रहे थे

इस तरह हम इन्हें पानी नही लेने देंगे | आपने कहा पानी तो परमात्मा का वरदान है इस पर सबका हक है, आप हमें पानी क्यों नही लेने देते | हमें तो केवल एक लोटा भर ही चाहिए | उन लोगों ने कहा- ठीक है आप एक लोटा पानी ले लीजिये पर ध्यान रहे आप पानी को छुएंगे नही | आपने कहा ठीक है और आप उस झील के पास गए और पानी को छुए बिना लोटा भरकर ले आये और अपने साथियों के साथ डेरे चले गए 



वहाँ के राजा थे, “पृथ्वी राज चौहान" | वहाँ के कुछ लोगों ने उस दिन के झगडे की शिकायत "पृथ्वी राज चौहान" से कर दी - की बाहर से आये कुछ लोगों ने यहाँ आकर आना सागर के पानी को लेकर हमसे झगडा किया हैं | अगले दिन "पृथ्वी राज चौहान" ने झगडा करने के जुर्म में आपके शागिर्दों को बंदी बनाकर आपको अपना निर्णय सुना दिया कि आप अपने साथियों के साथ इस स्थान को छोड़ कर नही गए तो इन बंदियों को

मौत के घाट उतार दिया जायेगा | आपने अपने शागिर्दों की जान बचाने की ऐवज में अजमेर छोड़ दिया |

इतिहास बयान करता है कि सन 1192 ई० हिजरी सम्वत 587 में तराइन के दुसरे युद्ध में गौरी ने सवा लाख से भी अधिक सैनिको की फौज के साथ पृथ्वी राज चौहान पर हमला कर दिया और युद्ध में हराकर उसे बंदी बना लिया कुछ समय बाद गौरी ने उसकी हत्या करवा दी | पृथ्वी राज चौहान की हत्या के बाद

गौरी के शासन में आप अजमेर लौट आये। उस समय ऊँची जाति वाले लोगों के अन्य जाति वाले लोगों से मतभेद बहुत ज्यादा बढ़ गये थे | वो लोग आपकी बातों से प्रभावित हो रहे थे | उन लोगों में आपकी प्रसिद्धी बढ़ती गई और वो अपना धर्म परिवर्तित करके इस्लाम धर्म अपनाने लगे समय गुजरता गया इस्लाम अपनाने वालों की संख्या बढ़ती गई | आपको भारत में इस्लाम धर्म का संस्थापक कहा जाने लगा |



 सन 1236 ई० हिजरी संवत 633 में आपका निधन हो गया | अजमेर की मिटटी में आपको दफन किया गया | मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने 1650 ई० हिजरी सम्वत 1060 में अपनी बेटी की देखरेख में आपके मकबरे का निर्माण करवाया, और अन्य मुग़ल सम्राटों ने मस्जिद का | जिसे आज हम अजमेर शरीफ के नाम से जानते हैं । विभिन्न धर्मों के दुर-दुर से बड़े-बड़े लोग इस दरगाह पर फुल, मखमली कपड़ा, इञ और चन्दन चढाने आते हैं।

 इस दरगाह को मुसलमानों का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता हैं ।


तो ये थी "गरीब नवाज ख्वाजा मुईनुद्दीन चिस्ती" के जीवन की कुछ जानकारी | आपको कैसी लगी बताईयेगा |

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