भाई मरदाना जी की पुरी जानकरी bhai mardana ji ki history
भाई मर्दाना जी के पिता मीर बदरा मिरासी अपनी पत्नी बीबी लख्खो और दो बेटों के साथ राय भोई की तलवंडी में रहते थे, जो अब पाकिस्तान में है जिसे हम ननकाना साहिब के नाम से जानते हैं ।
जैसे हिन्दुओं में भट्ट परिवार होते हैं जिनका कार्य अपने यजमानों के पुरखों का लेखा जोखा रखना होता है जिसे “कुर्सीनामा” कहते हैं । इस कुर्सीनामे से हमें अपने दादा पड़-दादा अपने पूर्वजों के नामों का पता चल जाता है । ऐसे ही मुस्लिम सम्प्रदाय में मिरासी बिरादरी वालों का यही कार्य होता है जो अपने मुस्लिम यजमानों के पुरखो का लेखा जोखा रखते हैं। संगीत द्वारा अपने यजमानों का गुणगान करते हुए ये अपने यजमानों को खुश रखते हैं।
इसी के साथ ये एक और काम करते थे, सन्देश वाहक का | सभी लोग इनको अपने घरों में बुलाकर इनके द्वारा अपने रिश्तेदारों के यहाँ सन्देश भेजते थे। जिन्हें लिखना आता था उनका पत्र और जिन्हें लिखना नहीं आता था उनका जुबानी सन्देश हु-ब-हु उनके रिश्तेदारों तक लेके जाते थे । लोग बाग इनकी जुबान पर विश्वास करते थे। दोनों तरफ के लोग इनकी अच्छी आव-भगत किया करते थे ।
इस तरह इन्हें दूर दराज के स्थानों पर आने-जाने का अनुभव और ज्ञान हो जाता था। रास्ते में संगीत गायन से अपना समय व्यतीत करते थे । इसी कार्य से मीर बदरा अपने परिवार का पालन-पोषण किया करते थे I कुछ वर्ष बीते थे कि एक-एक करके बदरा के दोनों बेटों की मृत्यु हो गई। फिर समय बीता और 6 फरवरी 1459 ई ० को बीबी लख्खो ने एक बेटे को जन्म दिया । बीबी लख्खो ने बड़े प्यार से अपने बेटे का नाम दाना रखा, जिसे हम मर्दाना के नाम से जानते हैं ।
जब दाना की आयु १० वर्ष की हुई तब इसी गावों के पटवारी श्री कल्याण दास जी के घर माता तृप्ता देवी ने 1469 ई० की कार्तिक मास की पुर्णिमा को सिखों के पहले गुरु “श्री गुरु नानक देव जी” को जन्म दिया । गुरु नानक देव जी बड़े हो रहे थे और दाना अपने पिता के साथ उनके गायन में रबाब सिखने लगे, उन्हें संगीत का बहुत अच्छा ज्ञान होने लगा । गुरु नानक देव जी जब कुछ बड़े हुए तो वो ईलाही बानी का गायन किया करते थे।भाई मरदाना उनके गायन से काफी प्रभावित हुये और उन्हें बड़े प्यार से सुनने लगे । इसी प्यार के कारण उनका ज्यादातर समय इन्हीं के साथ गुजरने लगा । "गुरु नानक देव जी " बचपन से ही परमात्मा की बंदगी में समय बिताते थे। वो भले ही आयु में दाना से १० वर्ष छोटे थे, परन्तु ज्ञान - भरी बातों के कारण दाना उन्हें सखा मानते थे । सखा की भांति वो एक दूसरे से प्रेम करने लगे। भाई दाना जी गुरु जी से अपनापन रखते थे और उन्हें दिल से बहुत मान देते थे ।
इनकी माता जी के दो बेटों की मृत्यु हो चुकी थी तो उनके दिल में ये बात घर कर गई थी कि उनके बुढ़ापे में पुत्र - सुख नहीं हैं तो युवावस्था होते- होते दाना की भी मृत्यु हो जाएगी इसलिए वो यदा-कदा दाना को “मर्जाना” अर्थात जल्द "मर जाने वाले” के नाम से भी बुलाती थी। एक दिन "गुरु नानक देव जी” ने इनकी माताजी को इनको मर्जाना के नाम से पुकारते हुए सुना तो उन्होंने इनकी माताजी से पूछा कि - "माई ! आप इसे मर्जाना क्यों बुला रहे हो”
तो उन्होंने स्पष्ट किया कि - नानक मेरे घर में मेरे बेटे ज्यादा समय तक जिन्दा नहीं रहते इसके दो भाई एक-एक करके अल्लाह को प्यारे हो गए हैं शायद ये भी एक दिन मर जायेगा, इसलिए मैं इसे मर्जाना बुलाती हूँ। और वो रोने लगी । गुरु नानक देव जी ने इनकी माताजी से कहा “माई अगर आप इसे परमात्मा की बंदगी में लगा दो तो परमात्मा इसे लम्बी उम्र बख्शेगा
इनकी माता जी ने कहा- अगर ऐसा है तो मैं इसे पर्मात्मा का नाम लेने से कभी भी नहीं रोकुंगी । तो गुरु नानक देव जी ने कहा - तो ठीक है आज से इसे मर्जाना नहीं मर्दाना बुलाना शुरू कर दो । अर्थात “मर -दा- ना" और साथ ही ये आश्वासन दिया कि अब से उनके के बच्चे जल्दी नहीं मरेंगे। तब से इन्हें सब लोग मर्दाना के नाम से पुकारने लगे ।
मर्दाना की संगीत में रूचि को देखकर पिता बदरा मिरासी ने संगीत की शिक्षा दिलवाने के लिए इन्हें संगीत विद्यालय भेज दिया । वहाँ मर्दाना जी संगीत की शिक्षा लेने लगे । उनके साथ स्वामी हरी दास जी भी संगीत की शिक्षा ले रहे थे | वो बांके बिहारी के भक्त थे उनके संगीत में कृष्ण प्रेम को देखकर मर्दाना भक्ति संगीत की ओर डूबते चले गए । आपको बताता चलूँ कि संगीत सम्राट तानसेन ने इन्हीं "स्वामी हरी दास जी” से संगीत की शिक्षा ली थी
जिन्हें बाद में अकबर के दरबार में संगीत सम्राट की उपाधि मिली। छोटी आयु में ही मर्दाना का विवाह बीबी रखी से हो गया इनके दो बेटे और एक बेटी हुई बड़े बेटे का नाम शहजादा, छोटे का रहजादा और बेटी काकाको रखा | एक दिन गुरु नानक देव जी जंगल में परमात्मा की बंदगी में लीन थे, अचानक उन्हें रबाब की तारों की कम्पन के साथ एक गायक की मधुर आवाज ने आकर्षित किया ।
संपूर्ण-जफरनामाह |
आवाज बेहद मधुर थी गुरु जी से रुका नहीं गया और वो उस आवाज की ओर चलने लगे थोड़ी दूर चलने पर एक पेड़ के नीचे मर्दाना को गाते हुए देखा । बरसों बाद पुराने मित्र की मधुर आवाज सुनकर गुरु नानक देव जी गद-गद हो गए । मर्दाना ने गुरु जी को देखा और प्रणाम किया । गुरु जी ने मर्दाने से कहा- मर्दाना मेरे साथ परमात्मा का गायन करोगे ? तो मर्दाना ने कहा- भाई मुझे अपने परिवार का भरण-पोषण भी करना हैं ।
गुरु जी ने कहा- मर्दाना जो परमात्मा की बंदगी करते हैं परमात्मा स्वयं उनके सभी कार्यों को सम्पन्न करवाते हैं । एक ही गांव के होने के कारण मर्दाना यदा-कदा समय निकाल कर गुरु जी के भजनों में उनके साथ रबाब बजाने लगे ।
समय के साथ गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी चले गए वहाँ “गुरु नानक देव जी” का विवाह बीबी सुलखनी देवी से हो गया और
सुल्तानपुर लोधी के नवाब दौलत खान ” के अन्न भंडार में मोदी नग गए | उनके दो बेटे श्री चंद और लख्मी चंद हुए । उनकी भक्ति और उदारता पूरे सुल्तानपुर लोधी में फैल गई थी । गुरु नानक देव जी के पिता कल्याण दास जी मर्दाना को “श्री गुरु नानक देव जी ” की खबर लेने भेजा करते थे । उन्हें “गुरु नानक देव जी” के साथ सुबह शाम परमात्मा की बंदगी के गायन में रबाब बजाना बेहद पसंद था । इसी प्रेम में वो कुछ दिन रुककर आते थे ।
एक बार जब मर्दाना “श्री गुरु नानक देव जी ” की ख़बर लेने सुल्तान पुर लोधी पहुंचे तब वहाँ “ गुरु नानक देव जी ” के साथ एक वाक्या गुजरा था । मोदी खाने में काम करते गुरु नानक देव जी को तीन वर्ष हो गए थे । एक दिन, मोदी खाने में, वो अनाज तौल रहे थे। काम करते-करते, उनका ध्यान परमात्मा के सिमरन में लग गया । परमात्मा का ध्यान करते-करते, अनाज तौलने लगे, गिनती चली आठ, दस, ग्यारह, बारह- बारह के बाद, जब तेरह आया, तो तेरह को, उन्होंने तेरा बोला,
तेरा अर्थात परमात्मा सब कुछ तेरा, जब तेरा शुरू हुआ, तो तेरा तेरा तेरा तेरा ही चलता गया, तेरा तेरा करते, तेरह-तेरह तौलने लगे। मोदी खाने मे, चाहे कोई पाँच सेर, लेने आ रहा था, यां आठ सेर, गुरु नानक देव जी, सबको तेरह-तेरह सेर, तौल कर देने लगे । ये खबर पुरे सुल्तान पुर लोधी में फैल गई कि नानक ने सारा मोदी खाना लूटा दिया हैं । ये खबर सुल्तान पुर लोधी के नवाब दौलत खान तक भी पहुँच गई, दौलत खान ने नानक जी को पेशी पर बुलाया और
उन्हें बंदी खाने में डाल दिया गया । जब मोदी खाने का हिसाब किताब किया गया तो मोदी खाने में एक सौ पैंतीस रुपये की बढ़त देखकर दौलत खान को अपनी गलती का अहसास हो गया | उसने गुरु नानक देव जी को तुरंत कैद खाने से आज़ाद किया और दोबारा मोदी खाना सौंपने लगे, तो गुरु जी ने मोदी खाने की जुम्मेदारी लेने से मना कर दिया और पुन: परमात्मा की बंदगी करने के लिए वेणी नदी के तट पर पहुंच गए ।
उसके किनारे पर एक पेड़ की छाया में ये ध्यान करने लगे। इनके एक सेवादार भाई बाला जी इनकी सेवा में थे। थोड़ी देर बाद भाई बाला जी के देखते-देखते उन्होने वेणी नदी में डुबकी लगा दी। काफी देर के इंतजार के बाद जब गुरु जी बाहर नही आये तो बाला जी निराश होकर घर चले गए । इस घटना के बारे में परिवार वालों को बताया सबको ऐसा लगा मानो गुरु जी नदी में डूब गए हो | परन्तु इनकी बहिन नानकी ने कहा- मेरे भाई को कुछ नहीं हुआ वो जल्द ही आ जायेगा और
हुआ भी ऐसा ही गुरु नानक देव जी तीन दिन बाद परमात्मा का सन्देश लेकर वेणी नदी से बाहर आये और वहाँ संगतों को दर्शन दिए । परमात्मा के मूल मन्त्र का उचारण किया |
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ॥”
अर्थात एक ओंकार परमात्मा एक हैं, उसका नाम सच्चा है, वो - रचनाकार सब जगह वियापक, वो भय से परे हैं, वैर से परे हैं, अमर हैं, किसी जोनी में नही आता, उसका प्रकाश स्वयं से हुआ है, गुरु की कृपा से मिलता है। इस बानी को जपो |
इसके बाद उन्होंने अपने परिवार का भार अपने ससुर मूला जी को सौंप कर अपना संदेश जन-जन तक पंहुचाने के लिए दुनिया की यात्रा करने की योजना बना ली। वो चाहते थे कि मर्दाना उनके साथ चले, ऐसा करने से पहले मर्दाना अपनी बेटी की शादी करवाना चाहते थे |
श्री गुरु नानक देव जी ” के एक शिष्य थे भाई बघीरथ उन्होंने मर्दान की बेटी की शादी के लिए भौतिक रूप से मदद की और मरदाना गुरु जी के साथ चलने को तैयार हो गए। गुरु नानक देव जी ने उन्हें सराय गामा गावों के भाई फिरंदा से एक रबाब लाने को कहा भाई मर्दाना वहां से रबाब ले आये और गुरु जी के साथ उनकी उदासियों में उनके चल दिए । वह गुरु नानक जी के रब्बी गायन शब्दों के गायन में रबाब बजाते थे उनके साथ शब्द गाते थे ।
गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्राओं में अपने संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए मर्दाने का सहयोग लिया । इन उदासियों के दौरान मर्दाना के गुरु जी के साथ एक भाई दोस्त और फिर गुरु-चेले के संबंध स्थापित होते चले गए ।
1507 ई० से 1521 ई० तक उन्होंने चार भ्रमण किये इन यात्राओं के दौरान गुरु 'जी ने संदेश दिया कि मूर्ति पुजा और बहुत से देवी देवताओं की उपासना अनावश्यक हैं।
ईश्वर एक है उसकी उपासना हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए हैं । वे कहते थे कि ईमानदारी से अपना जीवन यापन करो अपने परिवार का भरण-पोषण करो । भगवान को पाने के लिए जंगल-जंगल भटकने की आवश्यकता नही है | परमात्मा आपके भीतर ही हैं उसका सिमरन करो मेहनत करो मिल कर खाओ। इन्होने हिन्दू धर्म में फैली कुरीतियों का विरोध किया । ये पहले संत थे जिन्होंने नारी की निंदा को गलत कहा और नारी को सम्मान दिया उन्होने कहा “सो क्यों मंदा आखिए जित जम्मे राजान” अर्थात जो औरत, महा पुरुषों पीर पैगंबर ओलियाओं और अवतारों को जनम देने वाली वाली हैं उसे बुरा क्यों कहा जाए। वो निंदा की नही सम्मान की हकदार है । गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्राओं से दुष्ट लोगों को अच्छे कर्म करने की प्रेरणा दी । मलिक भागो को गरीबों की मेहनत की कमाई को गरीबों की भलाई के काम में लगाने का सन्देश दिया तो दुनी चंद को धन संग्रह से रोक कर भलाई के काम करने में लगाया ।
जन-जन तक संदेश पहुंचाने के लिए कई बार ऐसा हुआ कि मर्दाना गुरु जी से रुष्ट होकर उनसे अलग होकर जादूगरनी, कोड़ा राक्षस जैसे दुष्ट आत्माओं के शिकंजे में फंस जाते हैं और गुरु जी उन्हें उस संकट से निकालते हैं और उस दुष्ट आत्मा को अपने उपदेशों से उचित मार्ग पर ले आते हैं। उन्हें धर्म -कर्म के मार्ग पर ले आते हैं । पुन: मर्दाना उनके साथ- साथ हो जाते हैं ।
जन-जन तक संदेश पहुंचाने के लिए कई बार ऐसा हुआ कि मर्दाना गुरु जी से रुष्ट होकर उनसे अलग होकर जादूगरनी, कोड़ा राक्षस जैसे दुष्ट आत्माओं के शिकंजे में फंस जाते हैं और गुरु जी उन्हें उस संकट से निकालते हैं और उस दुष्ट आत्मा को अपने उपदेशों से उचित मार्ग पर ले आते हैं। उन्हें धर्म -कर्म के मार्ग पर ले आते हैं । पुन: मर्दाना उनके साथ- साथ हो जाते हैं ।
घर पहुंच कर परिवार की राजी ख़ुशी जानकर मर्दाना बेहद खुश थे । अपने परिवार वालों को बड़े प्यार से गुरु जी के साथ की गई यात्राओं के किस्से सुनाते रहते थे। जब भी वो अपने परिवार को कोई किस्सा सुनाते तो उनके अंदर एक आलोकिक आनंद की अनुभूति होती । जल्द ही उन्हें ये अहसास होने लगा कि इन यात्राओं से गुरु जी ने कितने लोगों को सही रास्ता दिखाया है, कितने ही लोगों का जीवन बनाया है । सुगम
परिवार के साथ ऐसे ही कुछ समय बीत गया मर्दाना पुनः गुरु जी के दर्शन करने सुल्तान पुर लोधी पहुंच गये । गुरु जी ने कहा- मर्दाना परिवार से मिल लिए। मर्दाना ने कहा- जी गुरु जी । गुरु जी ने कहा मर्दाना एक बार और यात्राओं पर चलना है । तूं चलेगा ? तेरे बिना मेरा गुजारा नहीं है । मर्दाना ने कहा- जी गुरु जी ! मैं भी आपके बिना कहाँ ! रह सकता हूँ । मैं समझ गया हूँ मेरे परिवार की चिंता करना मेरा कार्य नहीं हैं । कब चलना है ?
गुरु जी ने कहा- जल्द ही बस कुछ समय अपने परिवार के साथ बिता आओ। फिर जैसे ही तुम आओगे चलेंगे | मर्दाना कुछ दिन अपने परिवार के साथ रहकर गुरु जी के पास आ गए और गुरु जी ने अपनी चौथी यात्रा प्रारम्भ की। इस यात्रा / उदासी में गुरु जी ने पश्चिम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, इजराइल, सीरिया, जॉर्डन, दक्षिणी अरब, मक्का अफ्रीका तक भ्रमण किया ।
1524 ई० में गुरु नानक देव जी ने अपनी चौथी यात्रा / उदासी के बाद करतार पुर नगर बसाया । उसमें एक धर्मशाला बनवाई | अपने परिवार के साथ यहीं रहने लगे । धरम का उपदेश देने लगे । गुरु जी यहाँ खेती- बाड़ी करते थे । मर्दाना गुरु जी के वफादार सेवक रहे, वर्षों के लंबे सफर ज्ञान से उनका चित एकदम शांत हो चूका था | एक परमात्मा का ज्ञान हो गया था। 1534 ई० में इसी ज्ञान से एक दिन उन्हें अहसास हुआ कि उनकी जीवन यात्रा समाप्त होने वाली है।
उन्होंने गुरु जी से इस सम्बन्ध में बात की गुरु जी को भी इसका ज्ञान था | मर्दाना के परिवार वाले आये मुसलमान थे, गुरु हुए थे । मर्दाना मूल रूप से एक जी के प्रथम सिख भी थे । इसलिए सवाल उठा कि | मृत्यु के बाद उनके शरीर का संस्कार किस विधि से होना चाहिए | गुरु जी ने कहा- 'ब्राह्मण के शरीर को पानी में फेंक दिया जाता है, एक खत्री के शरीर को आग में जला दिया जाता है, एक वैश्य के शरीर को हवा में फेंक दिया जाता है, और
एक शूद्र के शरीर को पृथ्वी में दफन किया जाता है। तो मर्दाना तू ही बता जैसा तूं चाहता है, तेरे शरीर का वैसा ही संस्कार कर दिया जाएगा । मर्दाना ने उत्तर दिया, गुरु जी आपके निर्देश से मेरे शरीर का अभिमान पूरी तरह से चला गया है । चारों जातियों के साथ देह त्यागना मेरे लिए शान की बात है । मैं अपनी आत्मा को सिर्फ अपने शरीर का दर्शक मानता हूं | मृत्यु पश्चात मेरे शरीर से होने वाले संस्कार से मुझे कोई सरोकार नहीं हैं ।
इसलिऐ मेरे इस शरीर का जैसा आप चाहे वैसा संस्कार कर दें | तब गुरु ने कहा - 'क्या मैं तेरी समाधि बना दूं जिससे तूं संसार में प्रसिद्ध हो जाये । मरदाना ने उत्तर दिया - गुरु जी जब मेरी आत्मा अपने शरीर की कब्र से आज़ाद हो रही है तो आप इसे दोबारा पत्थर की कब्र में क्यों बंद करते हो ? गुरु जी ने उत्तर दिया- 'चूंकि आप भगवान को जानते हैं और इसलिए एक ब्रह्म हैं । हम आपके शरीर को रावी नदी की धारा में बहाने का संस्कार कर देंगे ।
इसलिए प्रार्थना की मुद्रा में इस नदी के किनारे पर बैठ जाओ, भगवान पर अपना ध्यान केंद्रित करो, हर क्षण उनका नाम दोहराओ, तुम्हारी आत्मा भगवान के प्रकाश में लीन हो जाएगी । मर्दाना गुरु जी के कहने के अनुसार नदी के किनारे बैठ गये और परमात्मा में ध्यान केंद्रित कर दिया सुबह के पहले पहर उनकी आत्मा लगभग 75 वर्ष की आयु में अपने शरीर से अलग हो गई। गुरु जी ने तब, अपने सिखों और उनके परिवार के साथ मर्दाना के शरीर को रावी नदी में बहा दिया ।
कीर्तन उपरांत प्रसाद (पवित्र भोजन) का वितरण किया गया। गुरु जी ने मर्दाना के बेटे शहजादा और उसके परिवार वालों को रोने से मना कर दिया क्योंकि मर्दाना अपने मूल स्वर्गीय घर लौट कर गए हैं। इसलिए मर्दाना के लिए कोई शोक नहीं होना चाहिए। उनके बड़े बेटे शहजादा उनके पिता के समान क्षमता के साथ गुरु जी के साथ रहने लगे ।
मर्दाना जी के जाने के लगभग पांच वर्ष बाद 22 सितंबर 1539 ई० में एक सेवादार भाई लहना जी को अपना उतराधिकारी घोषित कर गुरु नानक देव जी ने भी अपना शरीर त्याग दिया । जिस तरह मर्दाना जी गुरु नानक देव जी के भजनों में रबाब बजाते थे गायन करते थे, ठीक उसी तरह इनके बड़े बेटे शहजादा सिखों के दूसरे गुरु श्री गुरु अंगद देव जी के साथ उनके भजनों में रबाब बजाते थे, गायन करते थे
तो ये थी भाई मर्दाना जी के जीवन की जानकारी एक और पवित्र आत्मा के जीवन की जानकारी लेकर जल्द आऊंगा आपसे मिलने वाले प्यार का बहुत बहुत धन्यवाद । नमस्क